Monday, 23 October 2017

आखिर क्यों नहीं पढ़ाया जाता सारागढ़ी का युद्ध?



इतिहास में बहुत से ऐसे युद्ध हैं जिनका नाम किताबों में दर्ज है। हम और आप इन्हीं युद्धों के बारे में पढ़ते और समझते आए हैं लेकिन इनके अलावा भी कई सारे ऐसे युद्ध हैं जो किताबों में भले ही दर्ज न किए गये हों लेकिन वह अपने आप में ही एक इतिहास हैं। 12 सितंबर 1897 में हुआ सारागढ़ी युद्ध भी एक ऐसे ही युद्ध का नाम है। इसमें 21 सिख सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अफगान के 12 हजार सैनिकों को घुटने पर लाकर खड़ा कर दिया था लेकिन अफसोस कि आज भारत में इस ऐतिहासिक युद्ध के बारे में न ही बच्चों को पढ़ाया जाता है और न ही उन्हें इसके बारे में बताया जाता है। इस ऐतिहासिक युद्ध में जब सिखों का मनोबल टूटने लगा तो अचानक किसी ओर से ‘जो बोले सो निहाल’ के जयकारे की आवाज आई जिसने सिखों में जोश भर दिया और फिर देखते ही देखते उन्होंने अफगानों को मौत के घाट उतार दिया। आज भले ही इस इतिहास को बच्चों से दूर कर दिया गया हो लेकिन इसकी कहानी आज भी लोगों में जोश और जूनून पर देती है। आइये जानते हैं इस रोचक और ऐतिहासिक युद्ध के बारे में-    

क्यों हुआ था युद्ध                                                          
भारत-अफगान सीमा पर उस समय दो किले हुआ करते थे। गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला। यह दोनों सीमा रेखा के छोरों पर थे। यह सारागढ़ी से सटे हुए थे और यह एक बहुत ही अहम जगह मानी जाती थी। इन किलों की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर 21 सिखों को तैनात किया गया था क्योंकि अंग्रेजों को इन पर पूरा विश्वास था। ब्रिटिश अफगान पर आए दिन हमला करता रहता था जिसके चलते अफगान बेहद नाराज थे और वह भारत में घूसने की फिराक में रहते थे ताकि वह इन किलों पर कब्जा कर सकें। 12 सितंबर 1897 की सुबह सभी सिख सैनिक सोए हुए थे। सूरज की पहली किरण के साथ उनकी आंख खुली, नजारा चौंकाने वाला था। करीब 12 हजार अफगानी सैनिक उनकी ओर तेजी से बढ़ते जा रहे थे। दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सब हैरान थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। 21 सिख सैनिकों को उन्हें रोकना एक बड़ी चुनौती थी लेकिन उन्होंने निडर होकर उनका सामना किया।



बन गई थी करो या मरो की स्थिति
लॉकहार्ट के किले पर अंग्रेजी अफसर बैठे हुए थे। सिखों ने उन्हें संदेश भेजते हुए बताया कि एक बड़ी संख्या में अफगानियों ने चढ़ाई कर दी है और उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है। इस पर अंग्रेजी अफसर का जवाब सिखों के सोचे हुए जवाब से बिल्कुल अलग था। अफसर ने कहा कि इतने कम समय में सेना नहीं भेजी जा सकती है। उन्हें मोर्चा संभालना होगा और सुनते ही सिखों के लिए करो या मरो की स्थिति बन गई थी। वाहेगुरु का नाम लेकर वह अपनी-अपनी जगह पर मजबूती से तैनात हो गये। अफगानी निरंतर आगे बढ़ रहे थे। सारे सिख सैनिक अपनी-अपनी बंदूकें लेकर किले के ऊपरी हिस्से पर खड़े हो गए थे। सन्नाटा हर जगह पसर चुका था। बताते हैं कि सिर्फ अफगानियों के घोड़ों की आवाज सुनाई दे रही थी। थोड़ी ही देर में एक गोली की आवाज के साथ जंग शुरू हो गई थी। एक तरफ 12 हजार अफगान थे और दूसरी तरफ 21 सिख। लड़ाई ने भयानक रूप ले लिया और सिखों ने 1400 अफगानों को मार गिराया। सिखों ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी और किले को बचा लिया।

मरोणोपरांत मिला ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’
सिख चाहते तो मोर्चा छोडक़र वापस आ सकते थे लेकिन उन्होंने भागने से अच्छा दुश्मन का सामना करना उचित समझा और किले को बचाते-बचाते सभी सिख वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन हार नहीं मानी। जब यह खबर यूरोप पहुंची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। ब्रिटेन की संसद में सभी ने खड़े होकर इन 21 सिखों की बहादुरी को सलाम किया। इन सभी सिखों को मरोणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया गया जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था।

यूरोप में पाठ्यक्रम में शामिल है सारागढ़ी का युद्ध
बता दें कि भले ही हमारे देश में सारागढ़ी के युद्ध के बारे में न पढ़ाया जाता हो लेकिन यूरोप में इस युद्ध के बारे में स्कूलों में आज भी पढ़ाया जाता है। ब्रिटिशों का उन 21 सिखों का ब्रिटिशों के शासन को बचाने में महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए बच्चों को इसके बारे में पता होना चाहिए लेकिन इस बात का अफसोस है कि विदेश में तो इसके बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन भारतीय आज भी इस य़द्ध से अंजान हैं।

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