पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब |
सिख समुदाय के तीर्थ स्थल देश में ही नहीं, विदेश में भी हैं. यहां जो गुरुद्वारे हैं, उनसे गुरु साहेबानों का कोई न कोई रिश्ता जरूर रहा है. इन गुरुद्वारों के इतिहास से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं, जो कम ही लोग जानते हैं. इन्हीं में से एक है पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब का इतिहास. इस गुरुद्वारे का नाम तो लोगों ने बहुत सुना होगा लेकिन शायद इसके इतिहास से अछूते ही होंगे. तो चलिए आपको बताते हैं गुरु नानक देव जी से जुड़े गुरुद्वारा पंजा साहिब के इतिहास के बारे में:
यहां से हुई शुरूआत
सिखों के पवित्र तीर्थों में पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब का नाम सबसे ऊपर रखा जाता है. रावलपिंडी से 48 किमी दूर यह जगह है. कहते हैं कि एक बार गुरु नानक देव जी अपनी यात्रा के दौरान रावलपिंडी के हसन अब्दाल नामक जगह पर रुके थे. वहां वली कंधारी नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो बहुत अभिमानी और लालची था. उसके घर के पास एक छोटा सा झरना बहता था. जो भी शख्स वहां पानी भरने आता, उससे वह पैसे लिया करता था. गुरु नानक देव जी के चेहरे पर चंद्रमा समान तेज था और जब वह वहां पहुंचे तो उन्हें देख लोग वहां इकट्ठे हो गए.
गुरु जी से जलने लगा था वली कंधारी
गुरु नानक देव जी ने लोगों से कहा कि ईश्वर सिर्फ एक है. हम सब उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. गुरु जी की ऐसी ही शिक्षाओं से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग रोजाना उनके पास आने लगे. उनकी सेवा करने लगे. उनके शिष्यों में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे. चूंकि वली कंधारी भी मुस्लिम धर्मगुरु था, सो उसे गुरु नानक देव जी की लोकप्रियता से जलन होने लगी. उसने लोगों को पानी देने से इंकार कर दिया. कहा, जाओ अपने गुरु नानक से पानी मांगो. यह बात सुन लोग परेशान हो गए, क्योंकि वह झरना ही पानी का एकमात्र स्त्रोत था. लोग मिन्नतें करते रहे, पर उसने एक न सुनी.
भाई मर्दाना पहुंचे वली कंधारी के पास
लोगों ने गुरु नानक देव जी के सामने अपना दर्द बयां किया. गुरु जी ने सभी से शांत रहने के लिए कहा और जल्द ही इसका समाधान निकालने का आश्वासन दिया. गुरु जी ने अपने शिष्य भाई मर्दाना को वली कंधारी के पास भेजकर लोगों को पानी देने का आग्रह किया, लेकिन उसने फिर मना कर दिया. भाई मर्दाना वापस गुरु जी के पास लौट आए. वली कंधारी के मना करने के बावजूद गुरु जी ने दो बार और भाई मर्दाना को उसके पास भेजा, लेकिन उसने हर बार पानी देने से इंकार किया.
जमीन में छड़ी मारकर निकाला पानी
लोग प्यास की वजह से बुरी तरह तड़पने लगे थे. लोगों की इस स्थिति को देखते हुए गुरु जी ने जमीन पर छड़ी मारी और एक छोटा सा छेद कर दिया जिसमें से अचानक तेज पानी की धारा बाहर निकली. लोगों के चेहरे पर खुशी आ गई, लेकिन वली कंधारी यह देख आग बबूला हो गया. उसने गुरु जी को मारने का प्रण लिया.
फेंका चट्टान समान पत्थर, नानक जी ने पंजे से हवा में रोक दिया
एक दिन गुरु जी ध्यान में थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से एक विशाल पत्थर को गुरु नानक देव जी पर फेंका. पत्थर नीचे आता देख आसपास मौजूद लोगों ने नानक जी को वहां से भागने को कहा, लेकिन नानक जी ने उन्हें हौंसला रखने को कहा और वहां से नहीं हटे. जब पत्थर हवा में गुरु जी की तरफ आ रहा था तब अचानक गुरु जी ने अपना पंजा उठाया और वह पत्थर वहीं हवा में रुक गया. यह सब देख लोग और वली कंधारी बहुत हैरान हुए. वली कंधारी को अहसास हुआ कि सचमुच गुरु नानक में दिव्य शक्तियां हैं और वह माफी मांगता हुआ नानक जी के पास पहुंच गया. कंधारी ने लोगों को मुफ्त में पानी देने का वादा किया. आज उसी जगह पर गुरुद्वारा पंजा साहिब स्थित है और आज भी गुरुद्वारे में वह पत्थर मौजूद है, जिसे गुरु नानक देव ने अपने हाथ (पंजे) से रोका था. यही वजह है कि इस गुरुद्वारे का नाम 'पंजा साहिब' पड़ा.
गुरु जी की यात्राएं
अपने जीवनकाल के दौरान, गुरु नानक देव जी ने कई दूर-दूर के स्थानों कई यात्राएं की. उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ईश्वर एक है. उन्होंने अधिकांश यात्राएं पैदल पूरी की जिसमें उनका साथ भाई मर्दाना ने दिया. गुरु जी की 5 प्रमुख यात्राएं हैं जिसमें उन्होंने पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर का पैदल सफर तय किया. उन्होंने सभी धर्मों के कई महत्वपूर्ण स्थानों – हिंदू, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि का दौरा किया. उन्होंने सिलोन (श्रीलंका), बगदाद, मक्का, दक्षिण पश्चिम चीन, मिस्र, सऊदी अरब, नेपाल, तिब्बत, कजाखस्तान, इजराइल, सीरिया और अन्य स्थानों की यात्राएं की. जैसा की आप जानते हैं कि गुरु जी ने अपने जीवनकाल में कई दूर-दराज स्थानों की यात्राएं की और इन यात्राओं के दौरान ही लोगों के लिए कई चमत्कार किए. इसके चलते उनके साथ कई कहानियां जुड़ गई जिसमें से पंजा साहिब की कहानी भी एक है.
वर्तमान में गुरुद्वारे में क्या क्या है
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पंजा साहिब में मौजूद पत्थर जिस पर गुरु नानक देव जी के पंजे का निशान आज भी है। |
यदि गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब की वर्तमान स्थिति की बात करें तो यहां आज भी वह पत्थर मौजूद हैं जिस गुरु नानक देव जी ने अपने पंजे से हवा में रोक दिया था. इसके साथ ही उस पत्थर पर गुरु नानक देव जी की हथेली के निशान आज भी हैं. यहां भी 24 घंटे चलने वाली लंगर व्यवस्था है और सरोवर भी है जहां संगतें आकर स्नान करती हैं.
यहां के सालाना बड़े आयोजन
पंजा साहिब में गुरु नानक जयंती के मौके पर पाकिस्तान के अलावा हिंदुस्तान से बहुत बड़ी संख्या में संगतें आती हैं. इसके अलावा प्रत्येक गुरु पर्व और शहीदी दिवस पर यहां विशेष समागमों का आयोजन किया जाता है. इन आयोजनों में प्रत्येक वर्ष 2 से 3 हजार हिंदुस्तानी संगतें होती हैं और कई मौकों पर इनकी संख्या और ज्यादा बढ़ जाती है.