Sunday, 30 July 2017

तवायफों की जिंदगी के अनछुए पहलुओं को बयां करते चावड़ी बाजार के बंद ‘कोठे’


वायफ...एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही हमारे दिल और दिमाग में एक ऐसी महिला की तस्वीर बन जाती है जो पैरों में घूंघरू बांध, हाथों में कंगन पहन अपने दरवाजे पर आने वाले लोगों का मनोरंजन करती है लेकिन अगर इनकी असल जिंदगी के बारे में जानने की कोशिश की जाए तो वह हमारी सोच से काफी अलग है। मुगलकाल और ब्रिटिश सरकार के दौरान चावड़ी बाजार में बने तवायफों के घरों को ‘कोठा’ शब्द से पुकार जाता था। इन घरों का आकार थोड़ा बड़ा होता था जिसके चलते इन्हें कोठा कहा जाता था लेकिन अगर आज किसी के सामने यह शब्द बोला जाए तो उसकी सोच सीधे वैश्या पर जाकर रूकती है। उस दौरान घरों के आकार के हिसाब से नाम दिया जाता था। बड़ा घर तो कोठा, उससे थोड़ा छोटा तो कोठी और सबसे छोटे घर को कोठरिया कहा जाता था परंतु कोठा तवायफों की पहचान बन गया था। उस समय चावड़ी बाजार कोठों के लिए जाना जाता था। इसकी जानकारी एक वॉक के जरिए गो इन द सिटी के गौरव और अदिति भाटिया ने दी।

फोटो :  श्रीकांत सिंह

बंद कोठे बयां करते हैं हकीकत


चावड़ी बाजार में आज भी कुछ मकान ऐसे हैं जिन्हें पुराने वक्त में कोठा कहा जाता था। चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन से चावड़ी बाजार जाते वक्त पहला कोठा पड़ता है जो इस बात को बयां करता है कि उस वक्त इन घरों में रहने वाली महिलाओं की क्या स्थिति थी। बेशक उन्हें तवायफ कहा जाता था लेकिन उनकी वफादारी किसी सबूत का मोहताज नहीं थी। जब कोई नवाब इन कोठों पर आया करता था तो वह शराब या किसी अन्य नशे की बजाय पान खाता था जिसमें अफीम मिलाई जाती थी। इससे थोड़ा आगे चलने पर एक और कोठा बना है जो काफी बड़ा है।


तवायफों के लिए बनाई गई अलग मस्जिद


इन कोठों के साथ ही वहां रहने वाली तवायफों के लिए एक अलग मस्जिद बनाई गई थी जिसे ‘रुकनूदोला’ की मस्जिद कहा जाता था। इस मस्जिद में सिर्फ और सिर्फ तवायफें ही सजदा करने आया करती थी। चावड़ी बाजार में बनी यह मस्जिद आज भी उतनी ही चमकदार है जितनी उस समय में हुआ करती थी। रुकनूदोला की मस्जिद की दीवान वहां बने कोठे के बराबर हुआ करती थी। आज भले ही मस्जिद के नीचे दुकानों की वजह से रास्ता तंग हो गया हो लेकिन इसकी खूबसूरती आज भी बरकरार है।


चार वर्गों में बंटी थी यह महिलाएं


मुगलकानी समय में इन महिलाओं को चार वर्गों में बांटा गया था। सबसे पहले वर्ग की महिलाओं के लिए रखैल शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। इनके साथ नवाब अपनी मर्जी से जितना समय चाहें उतना समय रह सकते थे। साथ ही इनके आसपास नवाब के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं आता था। इूसरे वर्ग की महिलाएं तवायफ कहलाती थी जिनका काम था कथक के जरिए उनके दर पर आने वाले लोगों का मनोरंजन करना। तीसरे वर्ग की महिलाओं को दोमनी कहा जाता था जो सिर्फ मुजरा करती थीं और लोगों का मनोरंजन करती थी। इस कड़ी में आखिरी वर्ग था बेड़मी महिलाओं का जिसके साथ कोई भी व्यक्ति पैसों के दम पर शारीरिक संबंध बना सकता था।


मर्द भी हुआ करते थे तवायफ

सुनकर भले ही अजीब लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है कि उस समय मर्द भी तवायफ का काम करते थे। गौरव बताते हैं कि जब नवाब कई-कई दिनों तक इन तवायफों के पास रहा करते थे तो उस समय उनकी महिलाएं घरों में अकेली रहा करती थी और मनोरंजन का कोई साधन नहीं था। इतिहास के पन्ने इस बात का गवाह हैं कि वह महिलाएं अपने मनोरंजन के लिए मर्द तवायफों को बुलाया करती थी। वह भी अपने पैरों में घूंघरू बांधकर नृत्य करते थे और बेगमों का मनोरंजन करते थे।


तवायफों की वफादारी का सबूत है ‘राणादिल’

राणादिल उस समय की सबसे खूबसूरत तवायफों में से एक थी जो अपने नृत्य के जरिए किसी को भी अपने तरफ आकर्षिक कर लेती थी। इस दौरान औरंगजेब के भाई दाराशिकोह को राणादिल से मोहब्बत हो गई थी। राणादिल और दाराशिकोह एक-दूसरे को चाहने लगे और दोनों की शादी हो गई। इसके बाद दाराशिकोह की मृत्यु हो गई और औरंगजेब ने राणादिल को संदेश भेजा की आप बेहद खूबसूरत है और मैं आपको अपने शाही घर में रखना चाहता हूं। इस पर राणादिल ने अपने सिर के बाल काटकर औरंगजेब को भेज दिया। इतने पर भी औरंगजेब नहीं माना और उसने दोबारा संदेश भेजकर उसके चेहरे की तारीफ की और फिर से शाही घर में रहने का न्यौता दिया। दाराशिकोह के प्रति अपनी वफादारी दिखाते हुए राणादिल ने अपने पूरे चेहरे पर चाकू मार लिए और चेहरे से निकले खून और मास के कुछ हिस्से औरंगजेब को भेज दिए। इस पर औरंगजेब भी हैरान हो गया और राणादिल की इज्जत करने लगा।

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