Monday, 21 August 2017

1904: लड़कियों का पहला स्कूल, खूबियां कर देंगी दंग

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि बच्चे गर्मियों में तपते कमरों में बैठे हैं। पंखों से गर्म हवा आ रही है और उसके बाद भी किसी तरह उसके नीचे बैठे पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन इसके विपरीत एक स्कूल ऐसा भी है जहां बैठने पर न तो गर्मी लगती है और न ही किसी तरह की परेशानी होती है। हम बात कर रहे हैं 1904 में बनाए गए दिल्ली के पहले ऑल गल्र्स स्कूल की जहां विज्ञान का बेहद बढिय़ा नमूना देखा जा सकता है क्योंकि स्कूल को ठंडा रखने के लिए एयर कंडिशनर या किसी ओर चीज का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा बल्कि मटकों के सहारे कमरों को ठंडा रखा जा रहा है। स्कूल का नाम है ‘इंद्रप्रस्थ कन्या उच्चतम माध्यमिक विद्यालय’ जो जामा मस्जिद के पिछे बना है। यह छठी से बाहरवी तक की छात्राओं का है। इस स्कूल की स्थापना 1904 में लाला जुगल किशोर ने की थी। इसमें उनका साथ एक ब्रह्मवादी डॉ. ऐनी बेंसेट ने दिया था। वास्तव में इस स्कूल की स्थापना ऐनी बेंसेट के मन की उपज थी। उस समय महिलाओं की स्थिति दयनीय थी और शिक्षा की तरफ कोई ध्यान तक नहीं देता था। इसे देखते हुए ऐनी बेंसेट और लाला जुगल किशोर सहित कुछ अन्य लोगों ने मिलकर स्कूल की स्थापना की और इसे इंद्रप्रस्थ कन्या शिक्षालय का नाम दिया। धीरे-धीरे समय बदलता गया और स्कूल का नाम भी बदल गया। आज यह स्कूल सहायता प्राप्त स्कूल के रूप में कार्यरत है। साथ ही इस स्कूल को शहरी विरासत पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा यह पहला ऐसा स्कूल था जिसके नाम पर साल 2006 में डाक टिकट जारी किया गया था।

ठंडक के लिए मटकों से ढकी छत
स्कूल की उपप्रधानाचार्य सुनीता शर्मा ने बताया कि स्कूल के कमरों को ठंडा रखने के लिए छत पर घड़े रखे गए हैं और यह आज नहीं बल्कि तक रखे गए थे जब स्कूल की स्थापना की गई थी। इन मटकों की वजह से स्कूल के सभी कमरे ठंडे रहते हैं और बच्चों को पढ़ाई में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। इन घड़ों को ऊपर से पूरी तरह ढका गया है जिसकी वजह से यह कमरों में ठंडक देते हैं।

हॉल के नीचे सुरंग भी                                      जान के भले ही हैरानी होगी लेकिन इस स्कूल के हॉल के नीचे एक सुरंग भी थी और ऐसा कहा जाता है कि इसका रास्ता लाल किले जाकर निकलता है। आज इस सुरंग के कुछ हिस्से को स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और बाकी के कुछ हिस्से को बंद कर दिया गया है। साथ ही इस हॉल में आज भी वही नक्काशी है जो 1904 से पहले की गई थी।

राय बालकृष्ण दास ने की थी जमीन दान 
इस स्कूल की स्थापना भले ही ऐनी बेंसेट और लाला जुगल किशोर ने की थी लेकिन स्थापना के लिए राय बालकृष्ण दास ने जमीन दान में दी थी। वह शहर के धनी लोगों में से एक थे। उस समय स्कूल की पहली प्रिंसिपल विदेशी महिला लियोनोरा जीमीनर बनी थी। शुरूआत में यहां शिक्षा के लिए मात्र 5 से 6 महिलाएं आया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में इजाफा होता गया।

देश के नामी लोग आ चुके हैं यहां
इस स्कूल को देखने के लिए रबींद्रनाथ टैगोर, लाल बहादुर शास्त्री, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे विशेष लोग पधार चुके हैं। साथ ही इंद्रप्रस्थ स्कूल के लिए रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि ‘स्कूल का दौरा मेरे लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां केवल पढ़ाया नहीं जाता बल्कि जीवन के विचारों को उच्च-शुद्ध रखने व आत्मा को परमात्मा से जोडऩे का सलीखा सिखाया जाता है।’

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      स्कूल की वर्तमान स्थिति

अगर स्कूल की वर्तमान स्थिति की बात करें तो आज भी स्कूल को विरासत की तरह संभाल कर रखा गया है। स्कूल छठी से बाहरवीं कक्षा तक की छात्राओं का है। स्कूल में कुल 35 कमरें हैं जो काफी बड़ी जगह में हैं। इसके अलावा स्कूल में उस समय का एक कुआं भी है जिसका इस्तेमाल आज भी किया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को पीने के लिए स्वच्छ आरओ का पानी दिया जाता है।



No comments:

Post a Comment

गुरुद्वारा पंजा साहिब: जहां गुरु नानक देव जी ने पंजे से रोक दी थी चट्टान

पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब सिख समुदाय के तीर्थ स्थल देश में ही नहीं, विदेश में भी हैं. यहां जो गुरुद्वारे हैं, उनसे गुरु...