ठंडक के लिए मटकों से ढकी छत
स्कूल की उपप्रधानाचार्य सुनीता शर्मा ने बताया कि स्कूल के कमरों को ठंडा रखने के लिए छत पर घड़े रखे गए हैं और यह आज नहीं बल्कि तक रखे गए थे जब स्कूल की स्थापना की गई थी। इन मटकों की वजह से स्कूल के सभी कमरे ठंडे रहते हैं और बच्चों को पढ़ाई में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। इन घड़ों को ऊपर से पूरी तरह ढका गया है जिसकी वजह से यह कमरों में ठंडक देते हैं।
हॉल के नीचे सुरंग भी जान के भले ही हैरानी होगी लेकिन इस स्कूल के हॉल के नीचे एक सुरंग भी थी और ऐसा कहा जाता है कि इसका रास्ता लाल किले जाकर निकलता है। आज इस सुरंग के कुछ हिस्से को स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और बाकी के कुछ हिस्से को बंद कर दिया गया है। साथ ही इस हॉल में आज भी वही नक्काशी है जो 1904 से पहले की गई थी।
राय बालकृष्ण दास ने की थी जमीन दान
इस स्कूल की स्थापना भले ही ऐनी बेंसेट और लाला जुगल किशोर ने की थी लेकिन स्थापना के लिए राय बालकृष्ण दास ने जमीन दान में दी थी। वह शहर के धनी लोगों में से एक थे। उस समय स्कूल की पहली प्रिंसिपल विदेशी महिला लियोनोरा जीमीनर बनी थी। शुरूआत में यहां शिक्षा के लिए मात्र 5 से 6 महिलाएं आया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में इजाफा होता गया।
देश के नामी लोग आ चुके हैं यहां
इस स्कूल को देखने के लिए रबींद्रनाथ टैगोर, लाल बहादुर शास्त्री, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे विशेष लोग पधार चुके हैं। साथ ही इंद्रप्रस्थ स्कूल के लिए रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि ‘स्कूल का दौरा मेरे लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां केवल पढ़ाया नहीं जाता बल्कि जीवन के विचारों को उच्च-शुद्ध रखने व आत्मा को परमात्मा से जोडऩे का सलीखा सिखाया जाता है।’
स्कूल की वर्तमान स्थिति
अगर स्कूल की वर्तमान स्थिति की बात करें तो आज भी स्कूल को विरासत की तरह संभाल कर रखा गया है। स्कूल छठी से बाहरवीं कक्षा तक की छात्राओं का है। स्कूल में कुल 35 कमरें हैं जो काफी बड़ी जगह में हैं। इसके अलावा स्कूल में उस समय का एक कुआं भी है जिसका इस्तेमाल आज भी किया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को पीने के लिए स्वच्छ आरओ का पानी दिया जाता है।
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