Saturday, 18 August 2018

गुरुद्वारा पंजा साहिब: जहां गुरु नानक देव जी ने पंजे से रोक दी थी चट्टान



पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब
सिख समुदाय के तीर्थ स्थल देश में ही नहीं, विदेश में भी हैं. यहां जो गुरुद्वारे हैं, उनसे गुरु साहेबानों का कोई न कोई रिश्ता जरूर रहा है. इन गुरुद्वारों के इतिहास से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं, जो कम ही लोग जानते हैं. इन्हीं में से एक है पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब का इतिहास. इस गुरुद्वारे का नाम तो लोगों ने बहुत सुना होगा लेकिन शायद इसके इतिहास से अछूते ही होंगे. तो चलिए आपको बताते हैं गुरु नानक देव जी से जुड़े गुरुद्वारा पंजा साहिब के इतिहास के बारे में:

यहां से हुई शुरूआत
सिखों के पवित्र तीर्थों में पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब का नाम सबसे ऊपर रखा जाता है. रावलपिंडी से 48 किमी दूर यह जगह है. कहते हैं कि एक बार गुरु नानक देव जी अपनी यात्रा के दौरान रावलपिंडी के हसन अब्दाल नामक जगह पर रुके थे. वहां वली कंधारी नाम का एक व्यक्ति रहता था, जो बहुत अभिमानी और लालची था. उसके घर के पास एक छोटा सा झरना बहता था. जो भी शख्स वहां पानी भरने आता, उससे वह पैसे लिया करता था. गुरु नानक देव जी के चेहरे पर चंद्रमा समान तेज था और जब वह वहां पहुंचे तो उन्हें देख लोग वहां इकट्ठे हो गए.

गुरु जी से जलने लगा था वली कंधारी
गुरु नानक देव जी ने लोगों से कहा कि ईश्वर सिर्फ एक है. हम सब उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. गुरु जी की ऐसी ही शिक्षाओं से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग रोजाना उनके पास आने लगे. उनकी सेवा करने लगे. उनके शिष्यों में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल थे. चूंकि वली कंधारी भी मुस्लिम धर्मगुरु था, सो उसे गुरु नानक देव जी की लोकप्रियता से जलन होने लगी. उसने लोगों को पानी देने से इंकार कर दिया. कहा, जाओ अपने गुरु नानक से पानी मांगो. यह बात सुन लोग परेशान हो गए, क्योंकि वह झरना ही पानी का एकमात्र स्त्रोत था. लोग मिन्नतें करते रहे, पर उसने एक न सुनी.

भाई मर्दाना पहुंचे वली कंधारी के पास
लोगों ने गुरु नानक देव जी के सामने अपना दर्द बयां किया. गुरु जी ने सभी से शांत रहने के लिए कहा और जल्द ही इसका समाधान निकालने का आश्वासन दिया. गुरु जी ने अपने शिष्य भाई मर्दाना को वली कंधारी के पास भेजकर लोगों को पानी देने का आग्रह किया, लेकिन उसने फिर मना कर दिया. भाई मर्दाना वापस गुरु जी के पास लौट आए. वली कंधारी के मना करने के बावजूद गुरु जी ने दो बार और भाई मर्दाना को उसके पास भेजा, लेकिन उसने हर बार पानी देने से इंकार किया.

जमीन में छड़ी मारकर निकाला पानी
लोग प्यास की वजह से बुरी तरह तड़पने लगे थे. लोगों की इस स्थिति को देखते हुए गुरु जी ने जमीन पर छड़ी मारी और एक छोटा सा छेद कर दिया जिसमें से अचानक तेज पानी की धारा बाहर निकली. लोगों के चेहरे पर खुशी आ गई, लेकिन वली कंधारी यह देख आग बबूला हो गया. उसने गुरु जी को मारने का प्रण लिया.

फेंका चट्टान समान पत्थर, नानक जी ने पंजे से हवा में रोक दिया

एक दिन गुरु जी ध्यान में थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से एक विशाल पत्थर को गुरु नानक देव जी पर फेंका. पत्थर नीचे आता देख आसपास मौजूद लोगों ने नानक जी को वहां से भागने को कहा, लेकिन नानक जी ने उन्हें हौंसला रखने को कहा और वहां से नहीं हटे. जब पत्थर हवा में गुरु जी की तरफ आ रहा था तब अचानक गुरु जी ने अपना पंजा उठाया और वह पत्थर वहीं हवा में रुक गया. यह सब देख लोग और वली कंधारी बहुत हैरान हुए. वली कंधारी को अहसास हुआ कि सचमुच गुरु नानक में दिव्य शक्तियां हैं और वह माफी मांगता हुआ नानक जी के पास पहुंच गया. कंधारी ने लोगों को मुफ्त में पानी देने का वादा किया. आज उसी जगह पर गुरुद्वारा पंजा साहिब स्थित है और आज भी गुरुद्वारे में वह पत्थर मौजूद है, जिसे गुरु नानक देव ने अपने हाथ (पंजे) से रोका था. यही वजह है कि इस गुरुद्वारे का नाम 'पंजा साहिब' पड़ा.

गुरु जी की यात्राएं
अपने जीवनकाल के दौरान, गुरु नानक देव जी ने कई दूर-दूर के स्थानों कई यात्राएं की. उन्होंने लोगों को संदेश दिया कि ईश्वर एक है. उन्होंने अधिकांश यात्राएं पैदल पूरी की जिसमें उनका साथ भाई मर्दाना ने दिया.  गुरु जी की 5 प्रमुख यात्राएं हैं जिसमें उन्होंने पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर का पैदल सफर तय किया. उन्होंने सभी धर्मों के कई महत्वपूर्ण स्थानों – हिंदू, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि का दौरा किया. उन्होंने सिलोन (श्रीलंका), बगदाद, मक्का, दक्षिण पश्चिम चीन, मिस्र, सऊदी अरब, नेपाल, तिब्बत, कजाखस्तान, इजराइल, सीरिया और अन्य स्थानों की यात्राएं की. जैसा की आप जानते हैं कि गुरु जी ने अपने जीवनकाल में कई दूर-दराज स्थानों की यात्राएं की और इन यात्राओं के दौरान ही लोगों के लिए कई चमत्कार किए. इसके चलते उनके साथ कई कहानियां जुड़ गई जिसमें से पंजा साहिब की कहानी भी एक है.


वर्तमान में गुरुद्वारे में क्या क्या है
पंजा साहिब में मौजूद पत्थर जिस पर गुरु नानक देव जी
के पंजे का निशान आज भी है।
यदि गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब की वर्तमान स्थिति की बात करें तो यहां आज भी वह पत्थर मौजूद हैं जिस गुरु नानक देव जी ने अपने पंजे से हवा में रोक दिया था. इसके साथ ही उस पत्थर पर गुरु नानक देव जी की हथेली के निशान आज भी हैं. यहां भी 24 घंटे चलने वाली लंगर व्यवस्था है और सरोवर भी है जहां संगतें आकर स्नान करती हैं.

यहां के सालाना बड़े आयोजन
पंजा साहिब में गुरु नानक जयंती के मौके पर पाकिस्तान के अलावा हिंदुस्तान से बहुत बड़ी संख्या में संगतें आती हैं. इसके अलावा प्रत्येक गुरु पर्व और शहीदी दिवस पर यहां विशेष समागमों का आयोजन किया जाता है. इन आयोजनों में प्रत्येक वर्ष 2 से 3 हजार हिंदुस्तानी संगतें होती हैं और कई मौकों पर इनकी संख्या और ज्यादा बढ़ जाती है.


Monday, 21 May 2018

जनाब...प्यार दिल नहीं, 'दिमाग दा मामला है'

लव में जरूर कोई न कोई कैमिकल लोचा तो है, यूं ही थोड़ी न कोई प्यार में अनेकों फीलिंग लिए घूमता है। आज तक हमने सिर्फ यही सुना है कि प्यार दिलों में बसता है लेकिन साइंस के अनुसार प्यार दिलों में नहीं बल्कि दिमाग में बसता है। साइंस के अनुसार जब कोई लड़का और लड़की एक-दूसरे को देखते हैं तो उनमें दोस्ती करने के लिए भावनाओं में उत्सुकता आ जाती है और इस उत्सुकता के चलते दिमाग में जिन कैमिकल का रिसाव होता है, वही प्यार की कैमिस्ट्री बनाते हैं। यह एक नहीं बल्कि अनेक तरह के होते हैं। साइंस कहती है कि अट्रैक्शन के वक्त, बोंडिंग के वक्त, प्रेमी की याद के वक्त और लड़ाई-झगड़े के वक्त अलग-अलग हार्मोंन्स दिमाग में रिसाव करते हैं। यह सभी हार्मोंन्स हमारे शरीर में होते हैं लेकिन यह काम सिर्फ तब ही करते हैं जब आप किसी के संग प्यार में पड़ते हैं। तो आईये जानते हैं प्यार के पड़ाव और अलग-अलग पड़ाव पर दो प्रेमियों के बीच काम करने वाले हार्मोंन्स के बारे में- 


जब बजे दिल की घंटी तो समझो डोपामिन का हुआ रिसाव
अक्सर आपने कई लड़कों को यह कहते सुना होगा कि 'यार उस लड़की को देखकर तो मेरे दिल की घंटियां बज गई'। अब सोचने की बात यह है कि दिल की घंटियां हैं क्या और यह कैसे बजती है। दरअसल जब आप किसी ऐसी लड़की या लड़के को देखते हो जिसे देखकर आपकी धड़कने जोर से धड़कने लगती हैं या यूं कह लो की दिल में घंटियां बजने लगती हैं तो दिमाग में डोपामिन नामक हार्मोंन का रिसाव
होता है। यह रिसाव तभी होता है जब आपको कोई लड़की बेहद पसंद आती है और आप उससे दोस्ती करने के लिए उत्सुक रहते हैं। साइंस कहती है कि किसी को देखकर आपके दिमाग में डोपामिन का रिसाव जितना अधिक होगा, अट्रैक्शन भी उतनी ही बढ़ती जाएगी। तो यह जान लीजिए की जब दिल में घंटियां बजें तो समझ जाना कि दिमाग में डोपामिन का रिसाव होना शुरू हो गया है। 

अच्छी बोंडिंग बनाने के लिए यह है जरूरी
सोसायटी फॉर अल्जाईमर एंड ऐजिंग रिसर्च के जनरल सेक्रेटरी डॉ़ विकास धिकव बताते हैं कि आपकी स्ट्रोंग अट्रैक्शन के बाद जब दोस्ती हो जाती है तो बात आती है स्ट्रोंग बोंडिंग बनाने की। वह बताते हैं कि साइंस के मुताबिक जब हम स्ट्रोंक बोंडिंग बनाने के लिए आगे आते हैं तो दिमाग में ऑक्सीटोसिन का प्रवाह होता है। यह दिमाग की पिटयूट्री ग्रंथी से निकलता है। उदाहरण के लिए जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे मां के शरीर से ऑक्सीटोसिन मिलता है इसलिए बच्चा मां से दूर नहीं रह पाता। उस बच्चे की अपनी मां से स्ट्रोंग बोंडिंग हो जाती है और वह मां की गोद में आकर अपने आप को बेहद महफूज समझता है। यही कारण है कि ऑक्सीटोसिन स्ट्रोंग बोंडिंग का काम करता है। ये भी कह सकते हैं कि ऑक्सीटोसिन का रिसाव बोंडिंग का सिग्नल है। 

सिरोटोनिन लेवल कम होने पर आती है महबूब की याद
आपकी अट्रैक्शन हो गई, अच्छी बोंडिंग भी हो गई, घूमना-फिरना, शॉपिंग ये सब चीज हो गई। दोस्ती को एक-दो साल भी हो गए और अब कई बार स्थिति ऐसी आ जाती है कि आप अपने प्रेमी को लेकर काफी चिंतिंत हो जाते हो। अगर कभी वह फोन न उठाए तो उसे बार-बार फोन करना, हर दो से पांच मिनट बाद मैसेज करना। हमेशा उसी के ख्यालों में खोए रहना और हर पल उसकी याद आना। हर वक्त यह सोचना कि कहीं वह मुझे छोड़ न दे। यह सब तब होता है जब आपके दिमाग से सिरोटोनिन लेवल कम हो जाता है। जब आपके दिमाग में केवल यही ख्याल आए कि लड़की सिर्फ मेरे कहे अनुसार या मेरे हिसाब से चले तो समझ लीजिए कि आपका सिरोटोनिन लेवल कम हो चुका है।

इस हार्मोन की वजह से होते हैं लड़ाई-झगड़े
डॉ़ धिकव का कहना है कि जब प्रेमी जोड़े में आपस में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाए तो इसका मतलब है कि उसके दिमाग में एड्रनलीन और नॉरएड्रनलीन हार्मोंन्स का रिसाव शुरू हो गया है। मान लीजिए कभी प्रेमिका अपने प्रेमी के मैसेज का रिप्लाई न करे या उसका फोन न उठाए तो प्रेमी गुस्से से भर जाता है और दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है। जिस वक्त प्रेमी गुस्से में हो तो समझो कि उसके दिमाग में एड्रनलीन और नॉरएड्रनलीन हार्मोंन्स रिसने शुरू हो गए हैं। अपनी प्रेमिका के प्रति ज्यादा चिंतिंत होते हुए वह बिना सोचे-समझे गुस्सा होने लगता है। यह सभी हार्मोंन केवल तभी काम करते हैं जब आप प्रेम में होते हैं। अन्यथा यह हार्मोंन काम नहीं करते। 

प्रेमी फ्रंटल इनेक्टिविटी से भी हो जाते हैं प्रभावित
यह तो आपने सुना ही होगा कि प्यार में प्रेमी सब कुछ भूल जाते हैं और सभी फैसले दिमाग की जब दिल से लेते हैं। साइंस की भाषा में इस स्थिति को फ्रंटल इनेक्टिविटी कहा जाता है। इसके तहत प्रेमी दिमाग से बाधित और ह्दय से प्रवाहित हो जाते हैं। वह सभी फैसले दिमाग की जगह दिल से लेने लगते हैं और इस वजह से उनके निर्णय लेने की क्षमता काफी कम हो जाती है। इसके साथ ही साइंस यह भी कहता है कि आमतौर पर पुरुष दिमाग और महिला दिल से फैसले लेती है जबकि प्यार में स्थिति उलट हो जाती है। प्यार में पुरुष दिल से और महिलाएं दिमाग से निर्णय लेना शुरू कर देती हैं। 

प्यार में 'बॉडी का सिपाही' भी हो जाता है कमजोर
डॉ़ धिकव का कहना है कि साइंस में अमेग्डला को बॉडी का सिपाही कहा जाता है। यह दिमाग में होता है और इसमें कई तरह के हार्मोंन्स होते हैं। वास्तव में यह हमें डराने का काम करता है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को पानी से डर लगता है, उसके दिमाग से अगर अमेग्डला को निकाल दिया जाए तो उसका सारा डर खत्म हो जाता है। प्रेम की स्थिति में यह आग में घी का काम करता है। प्यार में अक्सर लड़का-लड़की बिना किसी खौफ के घर से भाग जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रेम की स्थिति में अमेग्डला कमजोर हो जाता है और डर खत्म हो जाता है। इसके कमजोर होने यानि की डर खत्म होने की वजह से प्रेमी घर से भागने की हिम्मत करते हैं। साइंस कहता है कि प्यार के स्ट्रोंग फीलिंग के चलते अमेग्डला कमजोर हो जाता है। 

वेसोप्रेसिन हार्मोंन करवाता है कमिटमेंट
अट्रैक्शन हो गई, बोंडिंग हो गई लड़ाई-झगड़े भी हो गए लेकिन प्यार अभी भी बरकार है। अब बात आती है कमिटमेंट यानि वादे की। वादा हमेशा साथ रहने का, वादा शादी का, वादा हर उतार-चढ़ाव में साथ देने का लेकिन क्या कभी सोचा है कि यह कमिटमेंट करवाता कौन है। नहीं न, दरअसल हमारे दिमाग में वेसोप्रेसिन नामक एक हार्मोंन होता है जो हमें वादा करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसी हार्मोंन के रिसाव के चलते हम किसी व्यक्ति से किसी चीज को लेकर कोई वादा करते हैं। इसके साथ ही आखिर में यह भी बता दें कि दिमाग में रिसने वाला ऑक्सीटोसिन इमोशनल बोंडिंग बनाने के लिए सबसे जरूरी है। साइंस कहती है कि प्रेम के दौरान बीच-बीच में ऑक्सीटोसिन का आना बेहद जरूरी है। 

Friday, 16 February 2018

मोहब्ब्त को अय्याशी का नाम न दीजिए जनाब...




दिल्ली जहां एक तरफ दिलवालों के लिए जानी जाती है वहीं दिल्ली को धरोहरों का शहर भी कहा जाता है। दिल्ली में इन धरोहरों का निर्माण अपना शासन कायम करने और धाक जमाने के लिए किया गया था लेकिन बदलते समय के साथ-साथ यह धरोहरें मोहब्बत के दीवानों के नाम हो गई। जिस किले या मकबरे का निर्माण सुल्तान की पहचान और उसका वर्चस्व कायम रखने को हुआ था, आज वहां लव बर्ड्स बाहों में बाहें डाल अपने प्यार का इजहार करते नजर आते हैं। फिर चाहे बात लोधी गार्डन की हो, पुराने किले की हो या फिर हुमायुं के मकबरे की, सभी दिशाओं में इनका ही बोलबाला नजर आता है। भले ही इन्हें इन इमारतों का इतिहास न पता हो लेकिन यहां के रास्ते यह बखूबी जानते हैं। वैसे भी जनाब प्यार में किसी का इतिहास जानने की जरुरत थोड़ी न पड़ती है। इन ऐतिहासिक इमारतों पर प्रेमी युगल खुद अपने प्यार का इतिहास रच रहे हैं। बदलते समय के साथ एक बदलाव यह भी आया है कि यह लव बर्ड्स दिल्ली के बदनाम पार्कों में जाना छोड़कर इन इमारतों को अपने प्यार का साक्षी बना रहे हैं। तभी तो यह कहते हैं कि 'हमने मोहब्बत की है अय्याशी नहीं'। आज तो वैसे भी वेलेंटाइन डे है यानि प्यार दिवस और इस दिन यहां आने वालों की संख्या में दोगुना इजाफा हो जाता है। आईये जानते हैं दिल्ली की कुछ ऐसी ऐतिहासिक इमारतों को जहां युवा अपने प्रेम की कहानी लिख रहे हैं। 
 
लोधी गार्डन: बेस्ट लवर प्वाइंट
लोधी गार्डन को दिल्ली का सबसे बेस्ट लवर प्वाइंट माना जाता है। चूंकि यह एनडीएमसी एरिया में पड़ता है इसलिए इसकी खूबसूरती और दोगुनी है। लोधी गार्डन को एक स्टेंडर्ड लव डेस्टिनेशन भी माना जाने लगा है और यही कारण है कि यहां आने वाले प्रेमी जोड़ों की संख्या बढ़ रही है। इसमें बने मकबरे, मस्जिद और पीछे की ओर बनी झील एक अलग एहसास करवाती हैं। भले ही यहां से मेट्रो स्टेशन थोड़ी दूरी पर है लेकिन प्रेमियों के लिए दूरी मायने नहीं रखती। वह किसी न किसी तरीके यहां तक पहुंच ही जाते हैं। 90 एकड़ में बने इस गार्डन में मोहम्मद शाह और सिकंदर लोधी मकबरे के साथ-साथ शीशा गुंबद और बारा गुंबद भी बना हुआ है। इसके अलावा प्रेमियों के बैठने और खाने-पीने के लिए यहां विशेष प्रबंध है।    


पुराना किला: छुप-छुपकर प्यार करने की जगह
पुराने किले का इतिहास क्या है इस बात को लव बर्ड्स नहीं जानते लेकिन यहां घूमना-फिरना बहुत अच्छे से जानते हैं। गर्मी हो या सर्दी यहां प्रेमियों का तांता लगा रहा है। इनके प्यार का परवान पारे पर भी भारी पड़ने लगता है। लोधी गार्डन में एंट्री फ्री है लेकिन पुराना किला जाने के लिए 10 से 15 रूपये की टिकट लेनी पड़ती है। इस किले की गिरती दीवारों को प्रेमियों का प्रेम मजबूती प्रदान करने की जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। इसके साथ ही यह इनके लिए फोटो खिंचवाने की भी बेस्ट जगह है। 

हौज खाज विलेज: लव और पार्टी का कॉकटेल
हौज खाज विलेज को लव और पार्टी के लिए सबसे बेहतर माना जाता है इसलिए यहां आने वाले युवाओं की संख्या भी काफी ज्यादा है। साउथ कैंपस के पास होने की वजह से यहां आने वालों में ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स हैं। डियर पार्क से होते हुए हौज खाज किले की तरफ पहुंचते हैं। इसके बीच में बनी झील और उसके चारों तरफ बने किले, मकबरे और मदरसों की दीवारों पर हर वक्त प्रेमी जोड़ों को बैठे हुए देखा जा सकता है। यह लव बर्ड्स इस जगह को इसलिए भी पसंद करते हैं क्योंकि यहां तक पहुंचने का रास्ता मेट्रो से जुड़ा हुआ है। फिर चाहे आप दिल्ली के किसी भी कोने में क्यों न हों।

सफदरजंग टोम्ब: ठीक-ठाक लवर स्पॉट
लौधी गार्डन से थोड़ी दूरी पर बना सफदरजंग टोम्ब भी प्रेमियों कुछ अड्डों मे से एक हें। इसमें ज्यादा तो नहीं लेकिन हां, दिन में आठ-दस प्रेमी जोड़े तो आ ही जाते हैं। यहां यह लोग इसलिए भी नहीं आते क्योंकि यहां एंट्री की टिकट लगती है जबकि लोधी गार्डन और हौज खाज में एंट्री फ्री है। इसके पास ही सरोजनी नगर मार्केट भी है जहां से शॉपिंग करते हुए प्रेमी जोड़े यहां प्यार जताने आ जाते हैं। आज भी यहां कई जोड़े आयेंगे और वेलेंटाइन डे मनायेंगे। 


हुमायुं टोम्ब: खूबसूरत और फोटोजेनिक वेलेंटाइन स्पॉट
हुमायुं टोम्ब की खूबसूरती का दीदार करने के लिए यहां भी रोजाना कई प्रेमी जोड़े आते हैं। इसके साथ ही यह जगह फोटो के हिसाब से भी बेहद अच्छी है। इसे दिल्ली की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक माना जाता है। यूं तो यह एक मकबरा है लेकिन इस मकबरे पर भी मोहब्बत की अनेकों कहानियां लिखी जा रही हैं। आज के दिन यहां दोगुनी संख्या में युवा आते हैं। 

Monday, 23 October 2017

आखिर क्यों नहीं पढ़ाया जाता सारागढ़ी का युद्ध?



इतिहास में बहुत से ऐसे युद्ध हैं जिनका नाम किताबों में दर्ज है। हम और आप इन्हीं युद्धों के बारे में पढ़ते और समझते आए हैं लेकिन इनके अलावा भी कई सारे ऐसे युद्ध हैं जो किताबों में भले ही दर्ज न किए गये हों लेकिन वह अपने आप में ही एक इतिहास हैं। 12 सितंबर 1897 में हुआ सारागढ़ी युद्ध भी एक ऐसे ही युद्ध का नाम है। इसमें 21 सिख सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अफगान के 12 हजार सैनिकों को घुटने पर लाकर खड़ा कर दिया था लेकिन अफसोस कि आज भारत में इस ऐतिहासिक युद्ध के बारे में न ही बच्चों को पढ़ाया जाता है और न ही उन्हें इसके बारे में बताया जाता है। इस ऐतिहासिक युद्ध में जब सिखों का मनोबल टूटने लगा तो अचानक किसी ओर से ‘जो बोले सो निहाल’ के जयकारे की आवाज आई जिसने सिखों में जोश भर दिया और फिर देखते ही देखते उन्होंने अफगानों को मौत के घाट उतार दिया। आज भले ही इस इतिहास को बच्चों से दूर कर दिया गया हो लेकिन इसकी कहानी आज भी लोगों में जोश और जूनून पर देती है। आइये जानते हैं इस रोचक और ऐतिहासिक युद्ध के बारे में-    

क्यों हुआ था युद्ध                                                          
भारत-अफगान सीमा पर उस समय दो किले हुआ करते थे। गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला। यह दोनों सीमा रेखा के छोरों पर थे। यह सारागढ़ी से सटे हुए थे और यह एक बहुत ही अहम जगह मानी जाती थी। इन किलों की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर 21 सिखों को तैनात किया गया था क्योंकि अंग्रेजों को इन पर पूरा विश्वास था। ब्रिटिश अफगान पर आए दिन हमला करता रहता था जिसके चलते अफगान बेहद नाराज थे और वह भारत में घूसने की फिराक में रहते थे ताकि वह इन किलों पर कब्जा कर सकें। 12 सितंबर 1897 की सुबह सभी सिख सैनिक सोए हुए थे। सूरज की पहली किरण के साथ उनकी आंख खुली, नजारा चौंकाने वाला था। करीब 12 हजार अफगानी सैनिक उनकी ओर तेजी से बढ़ते जा रहे थे। दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सब हैरान थे। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। 21 सिख सैनिकों को उन्हें रोकना एक बड़ी चुनौती थी लेकिन उन्होंने निडर होकर उनका सामना किया।



बन गई थी करो या मरो की स्थिति
लॉकहार्ट के किले पर अंग्रेजी अफसर बैठे हुए थे। सिखों ने उन्हें संदेश भेजते हुए बताया कि एक बड़ी संख्या में अफगानियों ने चढ़ाई कर दी है और उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है। इस पर अंग्रेजी अफसर का जवाब सिखों के सोचे हुए जवाब से बिल्कुल अलग था। अफसर ने कहा कि इतने कम समय में सेना नहीं भेजी जा सकती है। उन्हें मोर्चा संभालना होगा और सुनते ही सिखों के लिए करो या मरो की स्थिति बन गई थी। वाहेगुरु का नाम लेकर वह अपनी-अपनी जगह पर मजबूती से तैनात हो गये। अफगानी निरंतर आगे बढ़ रहे थे। सारे सिख सैनिक अपनी-अपनी बंदूकें लेकर किले के ऊपरी हिस्से पर खड़े हो गए थे। सन्नाटा हर जगह पसर चुका था। बताते हैं कि सिर्फ अफगानियों के घोड़ों की आवाज सुनाई दे रही थी। थोड़ी ही देर में एक गोली की आवाज के साथ जंग शुरू हो गई थी। एक तरफ 12 हजार अफगान थे और दूसरी तरफ 21 सिख। लड़ाई ने भयानक रूप ले लिया और सिखों ने 1400 अफगानों को मार गिराया। सिखों ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी और किले को बचा लिया।

मरोणोपरांत मिला ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’
सिख चाहते तो मोर्चा छोडक़र वापस आ सकते थे लेकिन उन्होंने भागने से अच्छा दुश्मन का सामना करना उचित समझा और किले को बचाते-बचाते सभी सिख वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन हार नहीं मानी। जब यह खबर यूरोप पहुंची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। ब्रिटेन की संसद में सभी ने खड़े होकर इन 21 सिखों की बहादुरी को सलाम किया। इन सभी सिखों को मरोणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया गया जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था।

यूरोप में पाठ्यक्रम में शामिल है सारागढ़ी का युद्ध
बता दें कि भले ही हमारे देश में सारागढ़ी के युद्ध के बारे में न पढ़ाया जाता हो लेकिन यूरोप में इस युद्ध के बारे में स्कूलों में आज भी पढ़ाया जाता है। ब्रिटिशों का उन 21 सिखों का ब्रिटिशों के शासन को बचाने में महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए बच्चों को इसके बारे में पता होना चाहिए लेकिन इस बात का अफसोस है कि विदेश में तो इसके बारे में पढ़ाया जाता है लेकिन भारतीय आज भी इस य़द्ध से अंजान हैं।

Monday, 21 August 2017

1904: लड़कियों का पहला स्कूल, खूबियां कर देंगी दंग

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि बच्चे गर्मियों में तपते कमरों में बैठे हैं। पंखों से गर्म हवा आ रही है और उसके बाद भी किसी तरह उसके नीचे बैठे पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन इसके विपरीत एक स्कूल ऐसा भी है जहां बैठने पर न तो गर्मी लगती है और न ही किसी तरह की परेशानी होती है। हम बात कर रहे हैं 1904 में बनाए गए दिल्ली के पहले ऑल गल्र्स स्कूल की जहां विज्ञान का बेहद बढिय़ा नमूना देखा जा सकता है क्योंकि स्कूल को ठंडा रखने के लिए एयर कंडिशनर या किसी ओर चीज का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा बल्कि मटकों के सहारे कमरों को ठंडा रखा जा रहा है। स्कूल का नाम है ‘इंद्रप्रस्थ कन्या उच्चतम माध्यमिक विद्यालय’ जो जामा मस्जिद के पिछे बना है। यह छठी से बाहरवी तक की छात्राओं का है। इस स्कूल की स्थापना 1904 में लाला जुगल किशोर ने की थी। इसमें उनका साथ एक ब्रह्मवादी डॉ. ऐनी बेंसेट ने दिया था। वास्तव में इस स्कूल की स्थापना ऐनी बेंसेट के मन की उपज थी। उस समय महिलाओं की स्थिति दयनीय थी और शिक्षा की तरफ कोई ध्यान तक नहीं देता था। इसे देखते हुए ऐनी बेंसेट और लाला जुगल किशोर सहित कुछ अन्य लोगों ने मिलकर स्कूल की स्थापना की और इसे इंद्रप्रस्थ कन्या शिक्षालय का नाम दिया। धीरे-धीरे समय बदलता गया और स्कूल का नाम भी बदल गया। आज यह स्कूल सहायता प्राप्त स्कूल के रूप में कार्यरत है। साथ ही इस स्कूल को शहरी विरासत पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा यह पहला ऐसा स्कूल था जिसके नाम पर साल 2006 में डाक टिकट जारी किया गया था।

ठंडक के लिए मटकों से ढकी छत
स्कूल की उपप्रधानाचार्य सुनीता शर्मा ने बताया कि स्कूल के कमरों को ठंडा रखने के लिए छत पर घड़े रखे गए हैं और यह आज नहीं बल्कि तक रखे गए थे जब स्कूल की स्थापना की गई थी। इन मटकों की वजह से स्कूल के सभी कमरे ठंडे रहते हैं और बच्चों को पढ़ाई में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। इन घड़ों को ऊपर से पूरी तरह ढका गया है जिसकी वजह से यह कमरों में ठंडक देते हैं।

हॉल के नीचे सुरंग भी                                      जान के भले ही हैरानी होगी लेकिन इस स्कूल के हॉल के नीचे एक सुरंग भी थी और ऐसा कहा जाता है कि इसका रास्ता लाल किले जाकर निकलता है। आज इस सुरंग के कुछ हिस्से को स्टोर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और बाकी के कुछ हिस्से को बंद कर दिया गया है। साथ ही इस हॉल में आज भी वही नक्काशी है जो 1904 से पहले की गई थी।

राय बालकृष्ण दास ने की थी जमीन दान 
इस स्कूल की स्थापना भले ही ऐनी बेंसेट और लाला जुगल किशोर ने की थी लेकिन स्थापना के लिए राय बालकृष्ण दास ने जमीन दान में दी थी। वह शहर के धनी लोगों में से एक थे। उस समय स्कूल की पहली प्रिंसिपल विदेशी महिला लियोनोरा जीमीनर बनी थी। शुरूआत में यहां शिक्षा के लिए मात्र 5 से 6 महिलाएं आया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या में इजाफा होता गया।

देश के नामी लोग आ चुके हैं यहां
इस स्कूल को देखने के लिए रबींद्रनाथ टैगोर, लाल बहादुर शास्त्री, सरोजिनी नायडू, अरूणा आसफ अली और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे विशेष लोग पधार चुके हैं। साथ ही इंद्रप्रस्थ स्कूल के लिए रबींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि ‘स्कूल का दौरा मेरे लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहां केवल पढ़ाया नहीं जाता बल्कि जीवन के विचारों को उच्च-शुद्ध रखने व आत्मा को परमात्मा से जोडऩे का सलीखा सिखाया जाता है।’

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      स्कूल की वर्तमान स्थिति

अगर स्कूल की वर्तमान स्थिति की बात करें तो आज भी स्कूल को विरासत की तरह संभाल कर रखा गया है। स्कूल छठी से बाहरवीं कक्षा तक की छात्राओं का है। स्कूल में कुल 35 कमरें हैं जो काफी बड़ी जगह में हैं। इसके अलावा स्कूल में उस समय का एक कुआं भी है जिसका इस्तेमाल आज भी किया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को पीने के लिए स्वच्छ आरओ का पानी दिया जाता है।



Wednesday, 9 August 2017

मैं लोगों के राज नहीं खुलवाना चाहती: नेहा धूपिया






रण जौहर के सिलेब्रिटी चैट शो कॉफी विद करण की ही तरह नेहा धूपिया का बॉलिवुड पॉडकास्ट शो ‘नो फिल्टर नेहा’  का पहला सीजन भी काफी चर्चा में रहा। इस शो में भी अक्सर स्टार्स के कुछ ऐसे राज खुलकर सामने आते हैं जिन्हें शायद हम नहीं जानते थे। नो फिल्टर नेहा के पहले सीजन की कामयाबी के बाद नेहा अपने पॉडकास्ट का दूसरा सीजन लेकर आ रही हैं। अपनी इस सेंकड पारी को लेकर उत्साहित नेहा कहती है कि किसी भी टॉक शो में गेस्ट और उस शो का फॉर्मट बहुत अहम होता है। साथ ही दर्शकों के बिना अधुरा ही रहता है। नेहा बताती है कि यह लोगों का प्यार ही है कि हम इस शो का दूसरा सीजन शुरू कर रहें है। जब नेहा से इस बार के सीजन की खासियत के बारें में पूछा गया तो नेहा ने बताया ​कि इस शो में आपको पूरी छूट दी जाती है कि आप अपने दिमागी विचार अच्छी तरह से रख सकें। हमारा मकसद किसी की पर्सनल लाइफ के बारे में जानना नहीं है। हम सिर्फ उन चीजों के बारे में स्टार्स से पूछते हैं जो उन्हें किसी तरह की परेशानी या सोच में न डाले। नो फिल्टर नेहा के दूसरे सीजन के बारे में बात करने के लिए नेहा धूपिया पंजाब केसरी के कार्यालय पहुंची और नए सीजन को लेकर काफी सारी बातें की।

अरविंद केजरीवाल को बुलाना चाहती हैं शो पर
नेहा धूपिया कहती हैं कि वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपने शो में बुलाना चाहती हैं। नेहा ने कहा कि हमारा शो आम आदमी का शो है और हम चाहते हैं कि हर आदमी हमारे शो से जुड़े। अरविंद केजरीवाल आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए हमारी कोशिश रहेगी उन्हें अपने शो पर बुलाने की।

वन टेक में होता है शूट                                                            नेहा से जब पूछा गया कि इस पॉडकास्ट शो में भी फिल्मों की तरह रिटेक किए जाते हैं तो नेहा कहती है कि इसमें कोई रिटेक  नहीं होता। स्टार्स जो कुछ भी कहता हैं वह सब कुछ रिकॉर्ड होता है। इसी लिए जब भी कोई स्टार्स शो पर आता है तो वह उन बातों से परहेज करता है जिन्हें वह सार्वजनिक नहीं करना चाहते।

अभिनेताओं के अलावा दूसरे क्षेत्र के लोगों को भी न्यौता
नो फिल्टर नेहा के दूसरे सीजन में अभिनेताओं के अलावा खेल जगत, म्यूजिक, फिल्म निर्देशन जैसे क्षेत्रों से भी स्टार्स को बुलाया जायेगा। पहले सीजन में खेल जगह से युवराज सिंह को बुलाया था और इस बार सानिया मिर्जा जैसी स्टार्स हमारे शो का हिस्सा है। इसके अलावा म्यूजिक जगत से सोनू निगम के न्यौता दिया गया। 

Monday, 31 July 2017

नेताजी बोस और आजाद हिंद फौज के इर्द-गिर्द घूमती है ‘राग देश’










पान सिंह तोमर, साहेब,बीवी और गैंगस्टर जैसी दमदार फिल्मों के जरिए बॉलीवुड में लोहा मनवाने वाले डायरेक्टर, एक्टर और राइटर तिग्मांशु धूलिया अब अपनी नई फिल्म ‘राग देश’ के साथ सिनेमाघरों में दस्तक देने आ रहे हैं। राग देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा बनाई आजाद हिंद फौज पर आधारित है जिसमें सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता कुणाल कपूर, मोहित मारवाह और अमित साध मुख्य भूमिका में है। इस फिल्म की कहानी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज और ब्रिटिश आर्मी के बीच हुई लड़ाई के इर्द-गिर्द घूमती है जिसमें हिंद फौज की हार हुई। ब्रिटिश आर्मी ने जीत के बाद आजाद हिंद फौज के लोगों पर कोर्ट मार्शल किया और आरोप लगाया कि इन्होंने देश के साथ गद्दारी की है। शाहनवाज खान, गुरबक्श सिंह ढिल्लों और प्रेम सहगल पर अंग्रजों ने लाल किले पर कोर्ट मार्शल किया। अपनी इस फिल्म के बारे में बात करने के लिए तिग्माशुं धुलिया, कुणाल कपूर और मोहित मारवाह पंजाब केसरी के कार्यालय पहुंचे जहां उन्होंने फिल्म से जुड़े कई मजेदार और दिलचस्प किस्सों के बारे में बात की।

चैलेंजिंग था यह रोल:कुणाल कपूर

फिल्म में शाहनवाज खान का रोल निभा रहे कुणाल कपूर का कहना है कि शाहनवाज का रोल निभाना काफी चैलेंजिंग था। वह बताते हैं कि उन्होंने शाहनवाज खान ऑटोबायोग्राफी पढ़ी, उनसे जुड़े लोगों से उनके बारे में बात की और खान के बारे में जानने की कोशिश की। इसके लिए मैं शाहनवाज के पौत्र से भी मिला और उनकी कुछ तस्वीरें ली। इस रोल को निभाने के लिए सबसे बड़ी बात थी उस समय की मानसिकता को समझना। उस समय लोग ऐसे थे जो देश के बारे में सबसे पहले सोचते थे और शाहनवाज भी उनमें से ही एक थे।






इस रोल के लिए छोड़ दी सारी आदतें:मोहित मारवाह

मोहित मारवाह इस फिल्म में प्रेम सहगल का किरदार निभा रहे हैं। वह बताते हैं कि जब इस किरदार के बारे में उन्होंने तिग्माशुं धुलिया से बात की तो उन्होंने कहा कि अगर इस रोल को बेहतर तरीके से निभाना चाहते हो तो अपनी सारी बुरी आदतें छोड़ दो। जैसे देर रात बाहर जाना, पार्टी करना आदि। तिग्मांशु के कहने पर यह सारी चीजें छोड़ दी और सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ रहा जो इस फिल्म और प्रेम सहगल से जुड़े थे। इसके अलावा मैं जो फिल्में भी देखता था वह भी द्वितीय विश्वयुद्ध से जुड़ी देखता था ताकि उस माहौल के बारे में जान सकूं।

कहां गया ऐ गालिब




                                       न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
                                       डबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता!
कुछ ऐसा था गालिब का अंदाज ए बयां। शेर-ओ-शायरी के रसिया मिजऱ्ा असदुल्लाह खा़ गा़लिब जिन्हें प्यार से मिजऱ्ा नौशा या मिजऱ्ा गालिब के नाम से भी जाना जाता था,महान शायर तो थे ही साथ ही बेहतरीन मिजाज के भी व्यक्ति थे। उनकी शायरी का संग्रह इतना विशाल है कि यदि खंगालना शुरू करें तो शायद खत्म ही न हो। कहते हैं कि एक व्यक्ति में शायर बनने के लिए गम,सुख,दुख और परिस्थितियों का भाव  बेहद मायने रखता है और यह सब गालिब को तोहफे में मिला, तब जाकर मिर्जा गालिब बनें। उनकी पत्नी उमराव बेगम से उन्हें सात बच्चे हुुए लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी जीवित नही रह सका जिसका उन्हें बेहद सदमा लगा। आज सभी लोग गालिब का नाम तो जानते हैं लेकिन गालिब के बारे में जानकर भी अंजान हैं। लोग तो शायद इस बात से भी अंजान है कि आज भी राजधानी में गालिब की हवेली को उनकी कुछ यादों के साथ संजो कर रखा गया है। 27 दिसंबर 1797 में आगरा (अकबराबाद) में जन्में गालिब बचपन से ही मोमिन,मीर और जौक से प्रभावित रहे थे। चांदनी चौक के बल्लीमारान में मीर कासिम जान गली में बनी गालिब की हवेली बेशक समय के साथ-साथ छोटी होती जा रही है लेकिन इसमें गालिब के उन साक्ष्यों को संभाल कर रखा गया है जो उनके जीवन के उतार-चढ़ाव को बयां करते हैं। 500 गज में बनी यह हवेली आज केवल 140 गज में ही सिमट कर रह गई है। चूंकि गालिब को बड़ा स्वाभिमान था और वह अपने आप में आत्मविश्वास रखते थे इसलिए उन्होंने अपने बारे में लिखा कि बेशक दुनिया में बहुत से कवि-शायर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है:              
                                  ‘‘हैं और भी दुनिया में सुखन्वर बहुत अच्छे
                                कहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयां और’’

बादशाह भी रहे शागिर्द
अपने जीवनकाल के दौरान गालिब ने अनेक जगहों की यात्रा की और कई शागिर्द बनाए। गालिब घुमक्कड़ किस्म के थे और उन्होंने अपनी यात्रा में कई स्थान देखे। फिरोजपुर, झिरका, भरतपुर, लखनऊ, कानपुर, इलाहबाद, बनारस, पटना, मर्शिदाबाद और कलकत्ता जैसी कई जगहों का वह दौरा कर चुके थे। इसी बीच उन्होंने बड़े-बड़े बादशाहों को भी अपना शागिर्द बनाया। इसमें बहादुरशाह जफर, अल्ताफ हुसैन हाली, मिर्जा दाग देहलवी, नवाब मुस्तफा खान शेफ्ता और मुंशी हरगोपाल तुफ्ता जैसे लोग उनके शागिर्द के रूप में शामिल हैं।

रो पड़े थे गालिब
Ghalib Ki Haveli At Chandni Chowk.

मिर्जा गालिब ने अपनी आखों से 1857 के युद्ध का वो मंजर देखा था जिसमें कई लोगों ने अपनी जान गवां दी थी। मई-जून का महीना था और दिल्ली वालों के पास पीने के लिए पानी नहीं था। गलियों में सिपाही तलवारें लेकर गश्त करते रहते थे। 134 दिन तक चली इस लड़ाई में लोगों को अपने घरों में कैद होकर रहना पड़ा और कई-कई दिनों तक उन्हें खाना नसीब नही होता था। गालिब ने इन दिनों को अपनी डायरी में कैद किया और इसे दखतंबू का नाम दिया। इस दौरान गालिब के दोस्त और बादशाह बहादुर शाह जफर का भी पतन हो गया था। जब उन्हें लाल किले में बुलाया तो वहां जफर की बजाय कोई गौरी मेम बैठी उनसे सवाल-जवाब कर रही थी। इस सब को देख गालिब बेहद दुखी हुए और रोने लगे।

उमराव बेगम से नोंक-झोंक
गालिब की अपनी पत्नी उमराव बेगम से यह शिकायत रहती है कि वह उनकी शायरी को नहीं समझती। इस बात को लेकर दोनों में नोंक-झोंक होती रहती थी। उमराव बेगम इलाही बख्श मारूफ की पुत्री थी और बल्लीमारान में एक हवेली में उनका निवास था। यह हवेली अब कासिमजान गली में राबिया गल्र्स स्कूल के नाम से चल रही है। जिस समय उनका विवाह मिर्जा गालिब से हुआ उस वक्त वह लगभग बारह वर्ष की और मिर्जा साहब तेरह वर्ष के थे। वैसे तो उमराव बेगम एक निष्ठावान और वफादार पत्नी थी और गालिब का ध्यान भी रखती थी लेकिन उन्हें गालिब की शायरी पसंद नही थी। इनके सात बच्चे हुए लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी जीवित न रह सका।

आज भी शायरी बयां करती दीवारें

मिर्जा गालिब की यादें बेशक समय के साथ-साथ धुंधली होती जा रही हैं लेकिन आज भी इनकी हवेली की दीवारे उनकी शायरी को बयां करती हैं। गालिब की हवेली में गालिब की लिखी कई शायरी और नजमें दीवारों पर लिखी गई हैं। न जाने इस हवेली में ऐसा क्या है कि यहां आकर माहौल शायराना हो जाता है। इतना ही नहीं इस हवेली में गालिब और उमराव के कपड़ो केे नमूने, उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों के नमूने मौजूद हैं। साथ ही उनका मनपसंद खाना और उनकी आदतों के बारे में भी लिखा गया है। यह सब देख एहसास होता है कि शायर बनना या शायरी कहना कोई बच्चों का खेल नही। 

Sunday, 30 July 2017

तवायफों की जिंदगी के अनछुए पहलुओं को बयां करते चावड़ी बाजार के बंद ‘कोठे’


वायफ...एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही हमारे दिल और दिमाग में एक ऐसी महिला की तस्वीर बन जाती है जो पैरों में घूंघरू बांध, हाथों में कंगन पहन अपने दरवाजे पर आने वाले लोगों का मनोरंजन करती है लेकिन अगर इनकी असल जिंदगी के बारे में जानने की कोशिश की जाए तो वह हमारी सोच से काफी अलग है। मुगलकाल और ब्रिटिश सरकार के दौरान चावड़ी बाजार में बने तवायफों के घरों को ‘कोठा’ शब्द से पुकार जाता था। इन घरों का आकार थोड़ा बड़ा होता था जिसके चलते इन्हें कोठा कहा जाता था लेकिन अगर आज किसी के सामने यह शब्द बोला जाए तो उसकी सोच सीधे वैश्या पर जाकर रूकती है। उस दौरान घरों के आकार के हिसाब से नाम दिया जाता था। बड़ा घर तो कोठा, उससे थोड़ा छोटा तो कोठी और सबसे छोटे घर को कोठरिया कहा जाता था परंतु कोठा तवायफों की पहचान बन गया था। उस समय चावड़ी बाजार कोठों के लिए जाना जाता था। इसकी जानकारी एक वॉक के जरिए गो इन द सिटी के गौरव और अदिति भाटिया ने दी।

फोटो :  श्रीकांत सिंह

बंद कोठे बयां करते हैं हकीकत


चावड़ी बाजार में आज भी कुछ मकान ऐसे हैं जिन्हें पुराने वक्त में कोठा कहा जाता था। चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन से चावड़ी बाजार जाते वक्त पहला कोठा पड़ता है जो इस बात को बयां करता है कि उस वक्त इन घरों में रहने वाली महिलाओं की क्या स्थिति थी। बेशक उन्हें तवायफ कहा जाता था लेकिन उनकी वफादारी किसी सबूत का मोहताज नहीं थी। जब कोई नवाब इन कोठों पर आया करता था तो वह शराब या किसी अन्य नशे की बजाय पान खाता था जिसमें अफीम मिलाई जाती थी। इससे थोड़ा आगे चलने पर एक और कोठा बना है जो काफी बड़ा है।


तवायफों के लिए बनाई गई अलग मस्जिद


इन कोठों के साथ ही वहां रहने वाली तवायफों के लिए एक अलग मस्जिद बनाई गई थी जिसे ‘रुकनूदोला’ की मस्जिद कहा जाता था। इस मस्जिद में सिर्फ और सिर्फ तवायफें ही सजदा करने आया करती थी। चावड़ी बाजार में बनी यह मस्जिद आज भी उतनी ही चमकदार है जितनी उस समय में हुआ करती थी। रुकनूदोला की मस्जिद की दीवान वहां बने कोठे के बराबर हुआ करती थी। आज भले ही मस्जिद के नीचे दुकानों की वजह से रास्ता तंग हो गया हो लेकिन इसकी खूबसूरती आज भी बरकरार है।


चार वर्गों में बंटी थी यह महिलाएं


मुगलकानी समय में इन महिलाओं को चार वर्गों में बांटा गया था। सबसे पहले वर्ग की महिलाओं के लिए रखैल शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। इनके साथ नवाब अपनी मर्जी से जितना समय चाहें उतना समय रह सकते थे। साथ ही इनके आसपास नवाब के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं आता था। इूसरे वर्ग की महिलाएं तवायफ कहलाती थी जिनका काम था कथक के जरिए उनके दर पर आने वाले लोगों का मनोरंजन करना। तीसरे वर्ग की महिलाओं को दोमनी कहा जाता था जो सिर्फ मुजरा करती थीं और लोगों का मनोरंजन करती थी। इस कड़ी में आखिरी वर्ग था बेड़मी महिलाओं का जिसके साथ कोई भी व्यक्ति पैसों के दम पर शारीरिक संबंध बना सकता था।


मर्द भी हुआ करते थे तवायफ

सुनकर भले ही अजीब लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है कि उस समय मर्द भी तवायफ का काम करते थे। गौरव बताते हैं कि जब नवाब कई-कई दिनों तक इन तवायफों के पास रहा करते थे तो उस समय उनकी महिलाएं घरों में अकेली रहा करती थी और मनोरंजन का कोई साधन नहीं था। इतिहास के पन्ने इस बात का गवाह हैं कि वह महिलाएं अपने मनोरंजन के लिए मर्द तवायफों को बुलाया करती थी। वह भी अपने पैरों में घूंघरू बांधकर नृत्य करते थे और बेगमों का मनोरंजन करते थे।


तवायफों की वफादारी का सबूत है ‘राणादिल’

राणादिल उस समय की सबसे खूबसूरत तवायफों में से एक थी जो अपने नृत्य के जरिए किसी को भी अपने तरफ आकर्षिक कर लेती थी। इस दौरान औरंगजेब के भाई दाराशिकोह को राणादिल से मोहब्बत हो गई थी। राणादिल और दाराशिकोह एक-दूसरे को चाहने लगे और दोनों की शादी हो गई। इसके बाद दाराशिकोह की मृत्यु हो गई और औरंगजेब ने राणादिल को संदेश भेजा की आप बेहद खूबसूरत है और मैं आपको अपने शाही घर में रखना चाहता हूं। इस पर राणादिल ने अपने सिर के बाल काटकर औरंगजेब को भेज दिया। इतने पर भी औरंगजेब नहीं माना और उसने दोबारा संदेश भेजकर उसके चेहरे की तारीफ की और फिर से शाही घर में रहने का न्यौता दिया। दाराशिकोह के प्रति अपनी वफादारी दिखाते हुए राणादिल ने अपने पूरे चेहरे पर चाकू मार लिए और चेहरे से निकले खून और मास के कुछ हिस्से औरंगजेब को भेज दिए। इस पर औरंगजेब भी हैरान हो गया और राणादिल की इज्जत करने लगा।

गुरुद्वारा पंजा साहिब: जहां गुरु नानक देव जी ने पंजे से रोक दी थी चट्टान

पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब सिख समुदाय के तीर्थ स्थल देश में ही नहीं, विदेश में भी हैं. यहां जो गुरुद्वारे हैं, उनसे गुरु...